विश्वकर्मा
देव विश्वकर्मा सुनो, हे प्रथम आर्किटेक्ट ।
निर्माण कार्य की रची, सुन्दर-सुन्दर टेक्ट ।।
सुन्दर-सुन्दर टेक्ट, रची आप अमरावती ।
आत्मज प्रभासवसु, मामाजी गुरु बृहस्पति ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, आपने रची द्वारिका ।
सब गांवन में जाय, देव फिर रचो द्वारिका ।।
शंब्दार्थ: विश्वकर्मा = निर्माण कार्य के आदिदेव (देवताओं के मुख्य अभियंता), आर्किटेक्ट = वास्तु-शास्त्री, टेक्ट = तरकीब, गूढ़ रहस्य, अमरावती = इन्द्रपुरी, आत्मज = पिता, बृहस्पति = देवताओं के गुरू
भावार्थ:
वास्तुशास्त्र के आदिगुरू विश्वकर्मा एवं मय हुए हैं। मय दानव संस्कृति के तो विश्वकर्मा देव संस्कृति के प्रथम वास्तुशास्त्री थे। आपने लौकिक व दिव्य ज्ञान के द्वारा देवाधिपति इन्द्र के लिए सुन्दर अमरावती का निर्माण कर स्वर्गलोक की शोभा बढ़ाई। पारिवारिक संबंधों में आप प्रभासवसु के पुत्र, देवगुरू बृहस्पति के भांजे एवं सृष्टि के प्रथम सम्राट राजा पृथु के समकालीन थे।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि भगवान् श्रीकृष्ण के लिए आपने द्वारिका की रचना कर इस मृत्युलोक को भी एक अनुपम अलौकिक उपहार दिया। अंत में कवि निवेदन करते हैं कि हे प्रभु विश्वकर्मा ! कृपया आप इस युग में भी गांव-गांव, शहर-शहर जाकर असंख्य द्वारिकाओं की रचना करो।
2 टिप्पणियां:
विश्वकर्मा
bahut bahut sukriya jo aap ne विश्वकर्मा maharaj ke bare me itni achi bat kahi
ajay sharma
thenx for u
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