अण्डा जैसा प्लाट
अण्डा जैसा प्लाट जो, ले लेवे श्रीमान ।
सभी तरफ दुश्मन बढ़े, रक्षा कर भगवान ।।
रक्षा कर भगवान, त्यागने की दो सलाह ।
जीवन भर पुकारे, हे ईश्वर हे अल्लाह ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, अपराध बिन खाडण्डा।
जीवन बिगड़ा जाय, खाय ब्राह्मण भी अण्डा।।
शब्दार्थ:: त्यागना = छोड़ना
भावार्थ: अण्डाकार प्लाट अगर कोई खरीद लेता है तो उसके चारों तरफ इतने शत्रु बढ़ जाते हैं कि केवल भगवान ही उनकी रक्षा कर सकते हैं। आप जानते हैं भगवान तो आजकल ऐसे ओवर बिजी हैं कि उन्हें अपने ही कार्यों से फुरसत नहीं है। इसलिए बुद्धिमानों को चाहिए कि वे मिलते समय उन्हें वह अण्डाकार प्लाट त्यागने की सलाह अवश्य देवें। जब तक वह प्लाट नहीं त्यागेगा तब तक जीवन भर विभिन्न कष्टों से कराहता हुआ हे ईश्वर! हे अल्लाह ! करताही रहेगा।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि इस प्रकार की भूमि के कुप्रभाव से कभी-कभी बिना अपराध के भी डण्डे खाने पड़ सकते हैं,जीवन में ऐसा नैतिक पतन भी हो जाता है कि ब्राह्मण पुत्र भी खुलकर अण्डे खाने लग जाते हैं। अण्डाकार भूखण्ड को आयताकार रूप में बदलने पर वह शुभ भूखण्ड बन जावेगा।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया