Vastu Shastra : Uttar Dakshin Road / North and South Roads (SK-30)



उत्तर-दक्षिण रोड उत्तर-दक्षिण रोड़ को, फिफ्टी-फिफ्टी जान। वहाँ सभी है मतलबी, बचाय अपनी जान ।। बचाय अपनी जान, जान के पड़ते लाले। वर देखे ना कीचन, वधू दुकान के ताले।। कह ‘वाणी’ कविराज, करो यूँ दुर्गा-शंकर । अपने-अपने हाल, आप दक्षिण वे उत्तर ।।
शब्दार्थ: फिफ्टी-फिफ्टी = आधा-आधा शुभाशुभ, जान के लाले = भयंकर मुसीबतें आना
भावार्थ: उत्तर-दक्षिण रोड़ वाले भूखण्ड को फिफ्टी-फिफ्टी अर्थात् अतिसामान्य श्रेणी का ही समझना चाहिए। उस परिवार के सभी सदस्य अपनी-अपनी स्वार्थ सिद्धि को पूर्ण करने में ही लगे रहते हैं। स्वयं को ही सुरक्षित रखने की होड़ में सभी अपने आप को हर पल असुरक्षित अनुभव करने लग गए हैं। पति-पत्नी में भी आए दिन विवाद चलते रहते हैं। इसका अच्छा समाधान यही है कि वर, घर की, किचन की व अन्य सामाजिक व्यवस्थाओं में अधिक हस्तक्षेप न करे और वधू वर की नौकरी या व्यवसाय आदि में कभी किसी प्रकार की बाधा न पहुँचाएं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि हे गृहस्वामी दुर्गाशंकर! ऐसा कर लो कि आप दोनों अपने-अपने कार्यों में लगे रहो वे उत्तर दिशा में बैठते हैं तो आप दक्षिण दिशा में बैठो। वास्तु के अन्य नियमों का पालन करने से इसका प्रभाव कम पड़ जाता है।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया



Vastu Shastra : Purab Pashchim Road / Roads on Eastern And Western Side (SK-29)



पूरब-पश्चिम रोड पूरब-पश्चिम रोड़ हो, हो मर्यों की बात । प्राणेश्वरियाँ प्राण दे, रहे आपकी बात ।। रहे आपकी बात, बढ़े बुजुर्गों का मान । खा मालपुआ खीर, वे दिन-भर चबाय पान ।। कह ‘वाणी’ कविराज, जरा करले जोड़-तोड़। नाज करता समाज, रख पूरब-पश्चिम रोड़ ।।
शब्दार्थ: बुजुर्ग = वृद्ध व्यक्ति, चबाय = चबाना, नाज = गर्व, पूरब = पूर्व दिशा
भावार्थ: जहाँ पूरब-पश्चिम दिशा में एक साथ रोड़ हो उस परिवार में पुरुष वर्ग की बातों को पूरा सम्मान मिलता है। प्राणेश्वरियाँ प्राणन्यौछावर कर देती हैं,परन्तु अपने प्रेम को घटने नहीं देती। बड़े-बुजुर्गों को अच्छा-भला सम्मान मिलता है, वे आए दिन मालपुआ-खीर खाते हुए दिन-भर पान चबाते रहते हैं। ‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि जरा भाग-दौड़ करो भाई, कुछ जोड़-तोड़ बिठाके ऐसा प्लाट खरीद लो। ऐसे भवनों में रहने वालों की सामाजिक प्रतिष्ठा तो बढ़ती है किन्तु उस अनुपात में धन वृद्धि कुछ कम रहती है।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया





Vastu Shastra : Purab Rakhe Road / Road on The Eastern Side (SK-28)



पूरब राखे रोड़ पूरब राखे रोड़ जो, रोड़ा मेटे रोड़। निरोग राखे आपको, धन देवेगा जोड़ ।। धन देवेगा जोड़, रख बिजली का सामान। सोना-पीतल बेच, लाल कलर के सामान।। कह ‘वाणी’ कविराज, हमेशा खुश राखे रब। निकले पूत सपूत, रोड़ तुम रखलो पूरब ।
शब्दार्थ: राखे = रखना, रोड़ा = बाधाएँ, मेटे = मिटाते हैं, रख = ईश्वर
भावार्थ: पूरब दिशा का रोड उस भवन की कई सारी विपत्तियों को स्वतरू दूर करने वाला होता है। अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ धन-वृद्धि भी करता है। वहां बिजली के सामान, सोना-पीतल जैसी वस्तुएँ और लाल, गुलाबी, आरेन्ज कलर की वस्तुओं का व्यापार बहुत अच्छा चलता है।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि वहाँ ईश्वर सदैव प्रसन्न रहते हैं, संस्कारवान अच्छे प्रारब्ध लिए हुए कई सुपुत्रों का जन्म होता है, जिससे परिवार का गौरव बढ़ता है। पूर्व दिशा का रोड़ इस प्रकार से लाभदायक सिद्ध होता है।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया



Vastu Shastra :Chandra Sarikha Sadan / Moon Shaped House (SK-27)



चंद्र सरीखा सदन चन्द्र सरीखा सदन हो,धन मुश्किल से आय। रहे न चार दिन वह धन, चोर, चोर ले जाय।। चोर, चोर ले जाय, आये नहीं थानेदार । आय बहुत देर से, धन मांगे थानेदार ।। कह ‘वाणी’ कविराज, ना देखा उस सरीखा। धन-धन थानेदार, सिंह जो चन्द्र सरीखा ।।
शब्दार्थ:: सदन = भवन, चन्द्र सरीखा = चन्द्रमा जैसी , वक्र आकृति का

भावार्थ: चन्द्राकार भवन में आय कम होती एवं चोरी-भय बढ़ता है। चोर के चोरी करने के बाद सकुशल घर पहुंच जाने पर जब उनका राजी-खुशी का टेलीफोन थाने में पहुंच जाता है, तब अनुभवी थानेदार चोरों को पकड़ने घटना स्थल पर पहुंचता है। वहां जाते ही थानेदार साहब भी पहले तो सांकेतिक भाषा में चाय-पानी की ही बात करते हैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि धन्य-धन्य हो थानेदार, मैंने भी अभी तक वक्रतायुक्त चतुर्थी के चन्द्र जैसा विचित्र थानेदार नहीं देखा। यदिआप चंद्राकार भूखण्ड को नहीं त्याग सकते हैं तो उसे आयताकार में बदल कर निर्माण कार्य कराएं।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया




Vastu Shastra : Bhu Damaru Akar / Damru Shaped Plot (SK-26)



भू डमरू आकार डम-डम-डम डमरू बजे, भू डमरू आकार। जिसका प्यारा नाम है, करे न कोई प्यार ।। करे न कोई प्यार, आँख में मोतियाबिन्द । नेत्र विकार ऐसा, बना न बेचारा बीन्द ।। कह ‘वाणी’ कविराज, रोज करता मरूँ-मरूँ। नव जीवन तू पाय, बेच वह डम-डम डमरू ।।
शब्दार्थ: बीन्द = दूल्हा
भावार्थ: डमरू जैसे भवन के निवासियों में परस्पर मोहब्बत नहीं रहती।प्रेमी, सुन्दरी,प्रेमसुख, मोहब्बतसिंह, उल्फत आदि नाम होने पर भी कोई उनसे प्यार नहीं करता। भूमि के कुप्रभाव से ऐसा मोतियाबिन्द हो जाता है कि बेचारा, बीन्द (दूल्हा) तक नहीं बन पाता ।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि तब जीवन से भयंकर निराश होकर हृदय एक दिन में कई बार, आज मरूँ, नहीं तो कल तो जरूर मरूँ, ऐसा कहने लग जाता है। अरे भाई! मरूँ-मरूँ मत कर, तुझे नया जीवन मिल जाएगा, तू तो यह डमरू आकार का प्लाट बेच दे या इसकी आकृति में थोड़ा-सा परिवर्तन करतेहए इसे शुभ आयताकार भूखण्ड बनाले।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया





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