चंद्र सरीखा सदन
चन्द्र सरीखा सदन हो,धन मुश्किल से आय।
रहे न चार दिन वह धन, चोर, चोर ले जाय।।
चोर, चोर ले जाय, आये नहीं थानेदार ।
आय बहुत देर से, धन मांगे थानेदार ।।
कह ‘वाणी’ कविराज, ना देखा उस सरीखा।
धन-धन थानेदार, सिंह जो चन्द्र सरीखा ।।
शब्दार्थ:: सदन = भवन, चन्द्र सरीखा = चन्द्रमा जैसी , वक्र आकृति का
भावार्थ: चन्द्राकार भवन में आय कम होती एवं चोरी-भय बढ़ता है। चोर के चोरी करने के बाद सकुशल घर पहुंच जाने पर जब उनका राजी-खुशी का टेलीफोन थाने में पहुंच जाता है, तब अनुभवी थानेदार चोरों को पकड़ने घटना स्थल पर पहुंचता है। वहां जाते ही थानेदार साहब भी पहले तो सांकेतिक भाषा में चाय-पानी की ही बात करते हैं।
‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि धन्य-धन्य हो थानेदार, मैंने भी अभी तक वक्रतायुक्त चतुर्थी के चन्द्र जैसा विचित्र थानेदार नहीं देखा। यदिआप चंद्राकार भूखण्ड को नहीं त्याग सकते हैं तो उसे आयताकार में बदल कर निर्माण कार्य कराएं।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया
3 टिप्पणियां:
इस जानकारी के लिए आभार
sundar kundali ke saath sundar chitr
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