Vastu Shastra : Karj Kare Jab Khel / When Debt Plays Its Role (SK-48)


कर्ज करे जब खेल कोड़े मन पर यूँ पड़े, कर्ज करे जब खेल । घाणी चलीन बैल की, निकल गया सब तेल । निकल गया सब तेल, लगे हो शनिमहाराज । खुश रहे वर्षों तक, वे सब भारी नाराज ।। कह ‘वाणी’ कविराज, आय सब दौड़े-दौड़े । पूछते हाथ जोड़, रहे अब कितने कोड़े ।।
शब्दार्थ: कोड़े = चाबुक, घाणी = कोल्हू

भावार्थ:
कभी-कभी भवन-निर्माण में कुछ ऐसे दोष रह जाते हैं कि जिससे आय के स्रोत इतने कम हो जाते हैं कि घर-खर्च चलाने के लिए भी कर्जा लेना पड़ता है । जब कर्ज व ब्याज के कोड़े पड़ते हैं, तब मन ऐसा व्याकुल हो उठता है, जैसे बिना हीघाणी चले सब तेल निकला जा रहा हो । जो व्यक्ति वर्षों से गहरे आत्मीय थे वे शीघ्र ही भारी नाराज हो जाते हैं, तब स्थिति शनिमहाराज लगने से भी बदतर हो जाती है ।

‘वाणी’ कविराज कहते हैं कि उन कर्जदारों को कोई भी उपाय नहीं सूझ रहा । देवी-देवता और ओझा लोगों की ओर कर्जदार घबराए हुए दौड़ रहे हैं । हाथ जोड-जोड़ कर पूछते हैं, हे प्रभु! बताओ हमने कर्ज के इतने हजार कोड़े तो खा लिए अब हमारे दुर्भाग्य में कितने कोड़े और शेष बचे हैं । ऐसे भूखण्डों का ढलान ईशान की ओर करने व उसे 90डिग्री से कम कोण बनाने से अर्थ संकट शीघ्र ही दूर हो जाएगा ।
वास्तुशास्त्री : अमृत लाल चंगेरिया


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